- 03 नवम्बर 2022
बोड़ो जनजाति का नृत्य है इसके मायने हैं जल, वायु और स्त्री
रायपुर, 03 नवम्बर 2022
हर आने वाले मौसम का स्वागत असम में खास तरीके से होता है। यहां के बोड़ो जनजाति के कलाकार संधिकाल में जुटते हैं और बागदोईशीखला नृत्य करते हैं। मौसम के परिवर्तन के अवसर पर होने वाला देश का यह अपने तरह का दुर्लभ नृत्य है। इसमें बदलते मौसम के अनुरूप मन में आए उत्साह के भाव कलाकार अपनी मुखमुद्रा से और आंगिक अभिव्यक्ति के माध्यम से करते हैं। बोड़ो जनजाति में बागदोईशीखला शब्द तीन अलग अलग शब्दों से मिलकर बना है। बाग के मायने हैं जल, दोई के मायने वायु और शीखला के मायने हैं नारी। कृषक संस्कृति के लिए जल और वायु वरदान हैं। परंपरा के अनुसार जल और वायु की अनुकूलता जीवन को समृद्ध करती है अतः यह इनके उत्सव का नृत्य है। चूंकि यह उत्सव स्त्रियों के माध्यम से अभिव्यक्त होता है अतः इसमें शीखला शब्द भी जुड़ गया है। आज राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में इस नृत्य की खास झलक मिली। चटख असमिया रंगों में और वाद्ययंत्रों के साथ असम से आये बोड़ो कलाकारों ने इस सुंदर नृत्य को प्रस्तुत किया। उनके आकर्षक असमिया परिधान ने लोगों को काफी लुभाया। साथ ही खास वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनि से कदमताल मिलाते पदचाप ने इस नृत्य के आनंद से लोगों को खूब सराबोर किया।
क्रमांक-4823/सौरभ // दानेश्वरी